Tuesday, February 21, 2012

आजकल

नहीं दिखता है आसमां में चांद आजकल
खो गर्इं हैं हमारी शांम आजकल
दौड़ भाग की इस दुनिया में
हर रोज मरता है गरीब आजकल
बन्द रखी हूं दरवाजा नहीं खोला करती
तन्हा रहती हूं अपनों से भी नहीं बोला करती
अन्जान सी दिखती हूं अब अपने ही घर में
खो गई हूं भटकती रहती हूं दिन रात आजकल
सो जाती हूं और सपने भी देखती हूं
पर खो जाते हैं मेरे सपने भी आजकल

2 comments:

  1. उम्मीद का दामन ना छोड़िएगा...
    क्यूंकि..
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती..

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  2. वक्त है गुजर जाएगा, आज कल की ही तो बात है फिर नया सवेरा आएगा............
    उम्मीद है उस सवेरे के सूरज से जगमगा उठेगीं आप........
    रखिए भगवान पर भरोसा, हर परिस्तिथी सही हो जाएगी...........

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