Wednesday, August 8, 2012

गरीबों को रोजगार और रोटी नहीं, मिलेगा मोबाइल


  गरीबों को रोजगार और रोटी नहीं, मिलेगा मोबाइल
गरीबों के लिए सरकार की तरफ से 15 अगस्त को एक नए तोहफे का एलान किया जाएगा। इस फरमान में सरकार 60 लाख बीपीएल परिवारों को मोबाइल बांटेगी साथ में 200 मिनट का टॉक टाइम भी दिया जाएगा।
इस पूरे कार्यक्रम में सरकार का 7 हजार करोड़ रूपये खर्च होगा। सरकार की तरफ से तो यह तोहफा लोगों को खुश करने के लिए लाया गया है, लेकिन इस फरमान ने गरीबों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब हमें सरकार से यह सवाल करना चाहिए कि, यदि मोबाइल से ही पेट भरता है तो एक मोबाइल क्यों, दिन में दो टाइम गरीबों को मोबाइल दिया जाए।
साथ में 24*7 बिजली की व्यवस्था भी की जाए।हमारी सरकार को इतना भी नहीं पता कि मोबाइल के लिए लोगों को जेब की भी आवश्यकता होगी, या तो गरीब उसे अपने गमछे में बांधे या पैजामे के नाड़े में। इस बात की चिंता देश के 60 लाख बीपीएल परिवारों को है। बीपीएल परिवारों का कहना है कि, यदि सरकार हमें मोबाइल दे रही है तो हर माह रिचार्ज के लिए कुछ रूपये भी दे दिया करे।
बहरहाल, यह सरकार की आने वाले चुनावों के लिए की जा रही तैयारियों में से एक है, हमारी सरकार अब देश को हाइटेक करने के विचार में है, शायद सरकार अपने चुनावी प्रचार को बढ़ाने और आसान करने के लिए यह कार्य कर रही है।

Sunday, July 15, 2012

लो आज जिन्दगी को फिर मोड़ मिल गया

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लो आज जिन्दगी को फिर मोड़ मिल गया
 हम को हम जैसा ही कोई और मिल गया।
 दोनों ही नादान है दोनों ही न समझ,
 फिर भी उम्मीदों को अब एक छोर मिल गया।
 खुल गए हैं पंख उड़ानों के अब मेरे,
 दुखों की फहरिस्त को पुणविराम मिल गया।
 हर तरफ अपनों की मार ही झेली थी हम ने,
 अब तो अपनों का ही एक अरमान मिल गया।
 लो आज जिन्दगी को फिर मोड़ मिल गया
 हम को हम जैसा ही कोई और मिल गया।

Friday, June 8, 2012

कितना रोऊं


न जाने अब कब रुकेगी
ये आंसुओं  कि धारा
कब रोऊं कैसे रोऊं
किस पर रोऊं
खुद पर या खुद की किस्मत पर
चाहत है कि आज इतना रोऊं
की उसमें तेरी सारी यादों को खोऊं
पर ये कहना तो बहुत आसान है
और अमल करना उतना ही मुश्किल
क्यों नहीं दिखते मेरे ये आंसू
उनको जो मेरे लिए सबसे अनमोल हंै
जो मेरे सब से करीब हैं
जो हमेशा मेरे पास साए की तरह रहते हैं
जो मुझे इस धरती पर लाएं हैं
क्या दर्द को किसी रूप की जरूरत है
क्यों भूल गई है मेरी मां
जब बिन बोले उसने मुझे आंचल में छुपाया था
जब बिन बोले मुझे एक निवाला खिलाया था
जब बिन बोले मेरी ही चोट पर मरहम लगाया था
या फिर जब पापा की डांट के बाद
अपने पास बुलाया था
तब तो दर्द को किसी भी रूप की जरूरत नहीं थी

पिता.................



पिता जीवन है सम्बल है शाक्ति है।
पिता शाक्ति के निर्माण की अभिव्यक्ति है।
पिता अंगुलि पकड़े बच्चे का सहारा है।
पिता कभी खट्टा तो कभी खारा है।
पिता पालन है पोषण है परिवार का अनुशासन है।
पिता धौंस से चलने वाला शासन है।
पिता रोटी है कपड़ा है मकान है।
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है।
पिता अप्रदर्शित अनन्त प्यार है।
पिता है तो बच्चों को इन्तजार है।
पिता से ही बच्चों के ढेÞर सारे सपने हैं।
पिता है तो बाजार के सारे खिलौने अपने हंै।
पिता से मां की बिंदिया और सुहाग है।
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आशक्ति है।
पिता अपनी इच्छाओं का अनन्त और परिवार की पूर्ति है।
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूर्ति है।
पिता एक जीवन को जीवन का दान है।
पिता सुरक्षा है अगर सर पर हाथ है।
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है।
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो ।
पिता का अपमान नहीं उन पर अभिमान करो।
क्योंकि मां बाप की कमी को कोई बांट नहीं सकता।
ईश्वर भी इन के आशीषों को काट नहीं सकता।
विश्व में किसी भी देवी देवता का स्थान दूजा है।
मां बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है।
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ है।
यदि बेटे के होते मां बाप असमर्थ।
वो खुश नसीब होते हैं मां बाप जिनके साथ होते है।
क्योंकि मां बाप के आशीषों के हाथ हजारों के हाथ होते हैं।

Thursday, June 7, 2012

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी
लोग बेवजहा उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे के तुम इतनी परेशां क्यों हो
उंगलियां उठेंगी सुखे हुए बालों की तरफ
एक नजर देखेेंगे गुजरे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी केई तंज किए जाएंगे
कांपते हुए हाथों पर भी फिकरे कसे जाएंगे
लोग जालिम हैं हर एक बात का ताना देंगे
बातों-बातों में मेरा जिर्क भी ले आएंगे
उन कि बातों का जरा सा भी असर मत लेना
वरन चहरे के तासुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी
-जगजीत सिंह

कौन बताएगा मुझे?


क्या लिखूं इस बात को 

 अपने जीवन के इतिहास को 

 सवालों के इन फलसफों को 

 अपने खाली जवाबों को 

 कैसे कहूं किससे पूंछू 

 क्या होगा मेरे जन्म का प्रमाण 

 कौन लिखेगा मेरे जीवन का निर्माण 

 ये सवाल रेंगते हैं दिमाग में

 किड़े का रूप लिए दिनों-रात 

कौन बताएगा कि क्या है हुआ मेरे साथ

 ये है पुर्नजन्म या हुआ है पुनर्विवाह

 कौन बताएगा मुझे की किया है मैने कैसा काम

 अब मुझे मिलेंगी दुआएं या बद्दुआंओं का लहराएगा परमान

 किसका उच्च पद है इस संसार में

 वो कौन है जो सबसे आगे है फेहरिस्त में 

 कौन बताएगा मुझे?

Friday, March 2, 2012

पटरियां


हम पटरियां हैं शायद
दो अंजान मुसाफिरों की तरह
लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिलती
एक ही मंजिल है एक ही सपना
पर हैं अलग सूरज और चांद की तरह
क्योंकि हम पटरियां है शायद
हमारा पटरियां होना भी सही है
पटरियों का अलग-अलग होना भी सही है
क्योंकि पटरियों को डर है कहीं
एक होते ही उनका आस्तिव न समाप्त हो जाए
हम पटरियां न जानें कितनों का
सफर तैय करती हैं
न जाने कितनों को अपनों से मिलातीं हैं
पर खुद को हमेशा जुदा ही पातीं हैं
कभी भी नहीं मिल पातीं हैं पटरियां
क्योंकि हम पटरियां है शायद..........

Wednesday, February 29, 2012

विश्वास


अगर मैं तुम्हारी हूं
तो मुझ पर विश्वास करो की
मैं सिर्फ तुम्हारी हूं
मैं कोई हवा नहीं हूं जो
किसी की भी सांस बनजाऊ।
न ही कोई उपन्यास हूं जो
हर किसी को लुभा जाऊं।
मैं सिर्फ और सिर्फ एक हूं
अगर में बेटी हूं तो सिर्फ अपने
मां बाप की
अगर में मां हूं तो सिर्फ अपने बच्चों की
और अगर में पत्नी हूं
तो सिर्फ अपने परमेश्वर की
अगर मुझ पर विश्वास करोगे तो मुझको पाओगे
नहीं तो मुझको इस संसार से खोता महसूस कर पाओगे।

Monday, February 27, 2012

एक अनिश्चित बात कि मैं जिंदा हूं .....


एक अनिश्चित बात कि मैं जिंदा हूं .....
अबकी बारी मेंने कलम पकड़ी तो
ख्याल आया कि कुछ ऐसा लिखा
जाए जो अनिश्चित हो
तो एक बात याद आई
जो बात सबसे अनिश्चित है
कि
मैं अभी जिन्दा हूं
पर क्या मैं आगे भी जिन्दा रह पाऊंगी
क्या मैं इससे पहले जिन्दा थी
जब एक बूढी मां को मेरे सामने
उसका जवान बेटा घर से निकाल रहा था
या फिर तब...
जब स्कूल जाती एक लड़की का दुपट्टा
मंनचलों ने खींच लिया था
या फिर तब...
जब मेरे ही किसी रिश्तेदार ने
एक भारत की बेटी को
भारत मां की गोद में आने से पहले
मां की कोख में ही मार दिया था
या तब...
जब बिना गलती के भी
मेरे ही घर में नौकरों को फटकारा जाता था
क्योंकि सबको व्यर्थ में ही अपना गुस्सा
उतारना होता था
शायद नहीं
तब मैं जिन्दा तो थी पर मरे होने का आभास कर रही थी
पर अगर आज मैं यह सब लिख रही हूं तो
यह इसका प्रमाण है कि मैं अभी जिन्दा हूं
पर क्या मैं आगे ज्यादा दिन जिन्दा रह पाऊंगी
अंत में यही सवाल मुझे झकझोर देता है।

Tuesday, February 21, 2012

आजकल

नहीं दिखता है आसमां में चांद आजकल
खो गर्इं हैं हमारी शांम आजकल
दौड़ भाग की इस दुनिया में
हर रोज मरता है गरीब आजकल
बन्द रखी हूं दरवाजा नहीं खोला करती
तन्हा रहती हूं अपनों से भी नहीं बोला करती
अन्जान सी दिखती हूं अब अपने ही घर में
खो गई हूं भटकती रहती हूं दिन रात आजकल
सो जाती हूं और सपने भी देखती हूं
पर खो जाते हैं मेरे सपने भी आजकल

Friday, February 17, 2012

है उम्मीद की एक दिन वो मिलेगी


है उम्मीद की एक दिन वो मिलेगी
मेरी लगन और महेनत से ही मिलेगी
परीक्षा ले रहीं हैं परिस्थितियां मेरी
ले लें जी भरकर ले लें
पर मुझे है उम्मीद की एक दिन जरूर मिलेगी,
होंगे वो सपने मेरे भी पूरे
जिन्हें देखा हैं मेंने अपने
प्यार और परिवार के साथ
जिस दिन वो मुझे मिलेगी,
उडुंगी में भी आसमां के सातवें स्तर पर
उडंते पंछियों की तरह
एक दिन वो जरूर मिलेगी वो,
तब जी लुंगी अधुरी जिंदगी को
पूरी चाह के साथ
समेट लुंगी दुनिया को पूरे
उल्लास के साथ
जिस दिन वो मुझे भाग और
सच्चाई के साथ
है उम्मीद की एक दिन वो आएगा
जब मुझको भी नौकरी मिलेगीण्

Thursday, January 5, 2012

मेरी कविता...


तड़पते बिलखते इस दिल को
तेरा सहारा मिला होता
समुंद्र की इन लहरों को
कोई तो किनारा मिला होता
अधूरे सपनों को संजोए,
अभी भी जिन्दा हूं मैं
सपने पूरे होते तो
कब के मर गए होते हम
रोज चांद ढलता है, सूरज उगता है
क्यों नहीं देती सुनाई
रोज बारिसों की हलचल
नौकरी में इतना न खो जाना मेरे दोस्त
की हमारा ध्यान ही ना रहे
खुश रहो तुम महफिल में,
पर हमारे जज्बात की की कोई कद्र नहीं
रोज मिलते हो हमसे
पर महज एक औपचारिकताओं में
कभी प्रेम की तृष्णा को भी महसूस करो
ये दिल हर वक्त इसी चाह में धड़कता है
वो मेरे प्रेम को समझेंगे
साथ ही पूरे होंगे सपने मेरे
अकेली बैठ खिड़की के किनारे
पल-पल तुम्हारे आने की राह तकती हूं
हर रोज अकेले सिर्फ तुम्हारी
आहट सुनने को तरसती हूं
तड़पता है दिल, बिलख उठती उठती है निगाहें
फिर भी नहीं पहुंचता
तुम तक संदेशा मेरे अहसास का
इंतजार के बाद जब थक जाते नैना मेरे
तो बंद कर आंखें गिनती हूं ७ तक गिनतियां
शायद आखरी अंक पर उनका फोन आ जाए...............


यकीन मानिए फोन जरूर आया

कृत शशिकला सिंह।