Friday, June 8, 2012

कितना रोऊं


न जाने अब कब रुकेगी
ये आंसुओं  कि धारा
कब रोऊं कैसे रोऊं
किस पर रोऊं
खुद पर या खुद की किस्मत पर
चाहत है कि आज इतना रोऊं
की उसमें तेरी सारी यादों को खोऊं
पर ये कहना तो बहुत आसान है
और अमल करना उतना ही मुश्किल
क्यों नहीं दिखते मेरे ये आंसू
उनको जो मेरे लिए सबसे अनमोल हंै
जो मेरे सब से करीब हैं
जो हमेशा मेरे पास साए की तरह रहते हैं
जो मुझे इस धरती पर लाएं हैं
क्या दर्द को किसी रूप की जरूरत है
क्यों भूल गई है मेरी मां
जब बिन बोले उसने मुझे आंचल में छुपाया था
जब बिन बोले मुझे एक निवाला खिलाया था
जब बिन बोले मेरी ही चोट पर मरहम लगाया था
या फिर जब पापा की डांट के बाद
अपने पास बुलाया था
तब तो दर्द को किसी भी रूप की जरूरत नहीं थी

पिता.................



पिता जीवन है सम्बल है शाक्ति है।
पिता शाक्ति के निर्माण की अभिव्यक्ति है।
पिता अंगुलि पकड़े बच्चे का सहारा है।
पिता कभी खट्टा तो कभी खारा है।
पिता पालन है पोषण है परिवार का अनुशासन है।
पिता धौंस से चलने वाला शासन है।
पिता रोटी है कपड़ा है मकान है।
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है।
पिता अप्रदर्शित अनन्त प्यार है।
पिता है तो बच्चों को इन्तजार है।
पिता से ही बच्चों के ढेÞर सारे सपने हैं।
पिता है तो बाजार के सारे खिलौने अपने हंै।
पिता से मां की बिंदिया और सुहाग है।
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आशक्ति है।
पिता अपनी इच्छाओं का अनन्त और परिवार की पूर्ति है।
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूर्ति है।
पिता एक जीवन को जीवन का दान है।
पिता सुरक्षा है अगर सर पर हाथ है।
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है।
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो ।
पिता का अपमान नहीं उन पर अभिमान करो।
क्योंकि मां बाप की कमी को कोई बांट नहीं सकता।
ईश्वर भी इन के आशीषों को काट नहीं सकता।
विश्व में किसी भी देवी देवता का स्थान दूजा है।
मां बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है।
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ है।
यदि बेटे के होते मां बाप असमर्थ।
वो खुश नसीब होते हैं मां बाप जिनके साथ होते है।
क्योंकि मां बाप के आशीषों के हाथ हजारों के हाथ होते हैं।

Thursday, June 7, 2012

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी
लोग बेवजहा उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे के तुम इतनी परेशां क्यों हो
उंगलियां उठेंगी सुखे हुए बालों की तरफ
एक नजर देखेेंगे गुजरे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी केई तंज किए जाएंगे
कांपते हुए हाथों पर भी फिकरे कसे जाएंगे
लोग जालिम हैं हर एक बात का ताना देंगे
बातों-बातों में मेरा जिर्क भी ले आएंगे
उन कि बातों का जरा सा भी असर मत लेना
वरन चहरे के तासुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी
-जगजीत सिंह

कौन बताएगा मुझे?


क्या लिखूं इस बात को 

 अपने जीवन के इतिहास को 

 सवालों के इन फलसफों को 

 अपने खाली जवाबों को 

 कैसे कहूं किससे पूंछू 

 क्या होगा मेरे जन्म का प्रमाण 

 कौन लिखेगा मेरे जीवन का निर्माण 

 ये सवाल रेंगते हैं दिमाग में

 किड़े का रूप लिए दिनों-रात 

कौन बताएगा कि क्या है हुआ मेरे साथ

 ये है पुर्नजन्म या हुआ है पुनर्विवाह

 कौन बताएगा मुझे की किया है मैने कैसा काम

 अब मुझे मिलेंगी दुआएं या बद्दुआंओं का लहराएगा परमान

 किसका उच्च पद है इस संसार में

 वो कौन है जो सबसे आगे है फेहरिस्त में 

 कौन बताएगा मुझे?