Friday, March 2, 2012

पटरियां


हम पटरियां हैं शायद
दो अंजान मुसाफिरों की तरह
लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिलती
एक ही मंजिल है एक ही सपना
पर हैं अलग सूरज और चांद की तरह
क्योंकि हम पटरियां है शायद
हमारा पटरियां होना भी सही है
पटरियों का अलग-अलग होना भी सही है
क्योंकि पटरियों को डर है कहीं
एक होते ही उनका आस्तिव न समाप्त हो जाए
हम पटरियां न जानें कितनों का
सफर तैय करती हैं
न जाने कितनों को अपनों से मिलातीं हैं
पर खुद को हमेशा जुदा ही पातीं हैं
कभी भी नहीं मिल पातीं हैं पटरियां
क्योंकि हम पटरियां है शायद..........

3 comments:

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  2. कर्म पथ पर निस्वार्थ भाव से आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाती हैं पटरियां...आपके कलम से एक और शानदार अभिव्यक्ति.. शानदार.. बधाई हो..

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