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हम को हम जैसा ही कोई और मिल गया।
दोनों ही नादान है दोनों ही न समझ,
फिर भी उम्मीदों को अब एक छोर मिल गया।
खुल गए हैं पंख उड़ानों के अब मेरे,
दुखों की फहरिस्त को पुणविराम मिल गया।
हर तरफ अपनों की मार ही झेली थी हम ने,
अब तो अपनों का ही एक अरमान मिल गया।
लो आज जिन्दगी को फिर मोड़ मिल गया
हम को हम जैसा ही कोई और मिल गया।
थे अकेले,हर ओर सन्नाटा था बिखरा
ReplyDeleteतुम आये तो कानों को शोर मिल गया.
:-)
सुन्दर रचना शशिकला
अनु