Thursday, February 24, 2011
मेरे दुख...
दुख तो मेरा बढ़ता जा रहा है
सवालों और जवाबों को साथ लिए
कहीं दुआऐं के पुल है तो कहीं बदुआओं का सागर
समय की गुलाम होती जा रही हूं मैं
परिस्थितियों को थाम नहीं पा रही हूं मैं
हर रात तन्हा गुजरती है
हर सुबह होती है रोनी सी
हम तन्हा दुनिया से लड़ेंगे
बच्चों सी बातें लगती है
कहीं सब सिमटता नज़र आता है
खुशियां फैलती है तो कहीं
बिलखता चहरा.....
हर वक्त यही परेशानी है
कभी ये सोचा ना था कि
प्यार जो परम सुख देता है
कभी वो ही दुखों की दरियां बिछाता है।
हर वक्त एक अजीब सा दर्द है
इस तन्हा दिल में जो शायद किसी के लिए भी
नहीं है,
बस मेरी तन्हाईं के लिए
इस समाज में मैं शायद सबसे
ज्यादा अपनी तन्हाईं को खोता
मेहसूस कर रही हूं....
शशीकला सिंह।
Wednesday, February 2, 2011
अनजाने शहर में अपना घर
स्कूल के दिनों में जब हम पढ़ा करते थे तो हमारे टीचर ने यह बता दिया था कि अच्छी पढाई के लिए स्टूडेंटस् को अपना घर छोड़कर बाहर जाना पड़ता है। उन दिनों यह सोचकर डर लगता था हम कैसे अपने परिवार को अकेला छोड़कर बाहर पढ़ने जाएंगे। आखिर वो समय आ ही गया जब मुझे अपना घर छोड़कर पढ़ाई के लिए दिल्ली आना पढा। आज भी जब मुझे वो दिन याद आता है तो मेरी आंखो में पानी आ जाता है। मम्मी और पापा दोनों भरी आंखों से जीवन में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दे रहे थे और भईया स्टेशन के लिए गाड़ी तैयार कर रहा था। श्रीराम कालेज में पढने वाली मानसी को अभी भी अपने फैमली की काफी याद आती है। दिल्ली के होस्टल में रहने वाली इसकी फ्रेन्ड्स ने इस लाईफ को बेहद खूबसूरत कहा,- उसका कहना कि किसी लड़की को गोल्डन पीरियड तो केवल होस्टल लाईफ ही है। यहां पर लड़कियां पढ़ाई के साथ जम कर मस्ती भी करती है।
होस्टल की जिन्दगी में आजादी और जिम्मेंदारियां साथ में चलती है। होस्टल में रहने वाली लड़कियां हम उम्र होती है। सब के मन में अपने सपने होते है और उनको पूरा करने का ख्वाब। जिसने भी अपनी जिन्दगी के कुछ पल होस्टल में बिताये है या बिता रहे है वो इस जिन्दगी को बड़ी ही खूबसूरती के साथ जीते है।
जिन्दगी की पाठशाला
होस्टल लाईफ जिन्दगी का वह पड़ाव होता है जहां लड़कियां पढ़ाई और करियर दोनों पर फोकस करती है। होस्टल में हर लड़की का अलग स्वभाव और अलग जीवन जीने का ढंग होता है। इन सब को आपस में एडजस्ट करना होता है। इस दौरान लड़कियों को कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है, जो उनके अन्दर कॉन्फीडेन्स बढ़ाता है और परेशानियों का मुकाबला करना सिखाता है। ऐसी जगह पर रहने से लड़कियां के अन्दर टीम वर्क की क्वालिटी भी पैदा होती है। जो आज के समय में सफल करियर के लिए के लिए बेहद जरूरी है।
मैनेजमेंट गुरू
लाईफ में पैसा और समय सबसे इम्पोर्टेन्ट है। गर्लस् होस्टल लाईफ में इन दोनों की कमीं कभी कभी बहुत खलती है। होस्टल में कई लड़कियां साथ रहती है, जो आपस में परपंच बनाती है। जैसे कभी खाने कई बुराई तो वार्डेन की, जिसके कारण पढने के लिए समय निकालना उनके लिए मुश्किल होता है। महीनें के आखिर में पैसों की तंगी हमें भी रुलाती है। ऐसे में किस तरह उन्हें मैनेज करना होता है वो सब लड़कियां यहीं सीखती है। मतलब होस्टल में रहने से आप मैनेजमेंट के गुण भी सीख जाते है।
गलत कम्पनी
होस्टल में अच्छी बुरी सभी तरह की लड़कियां होती है। ऐसे में किसी भी नई लड़की के लिए यह पहचान करना बड़ा ही मुश्किल होता है कि उसमें से अच्छी साथी कौन हो सकती है। क्योंकि गलत संगत का असर उसके भविष्य के लिए खतरनाक भी हो सकता है। कुछ लड़कियां ऐसी भी होती है जो घर की बंदिशों को तोड़ कर, यहां जम कर मौजमस्ती करती है लेकिन पढ़ाई कि ओर जरा भी ध्यान नहीं देती है। लेट नाईट पार्टियां में शरीक होना, डिस्कों में थिरकना, बैवजह दोस्तों के साथा घूमना आदि उन्हें पसंद होता है। ऐसे में वो अपने साथ साथ परिवार को भी धोखा देती है जिसका पता उन्हें बाद में चलता है। ऐसी कम्पनी से बचने के लिए लड़कियों को अपने विवेक और बुद्धी से काम लेना चाहिये। लड़कियो के लिए किसी अन्जाने शहर में मौजमस्ती और दोस्ती का एक दायरा जरूर होना चाहिए।
नोकझोंक
एनसीआर में रहने वाली होस्टल गर्लस् अपने आप में काफी खुश है। घर से दूर रहकर भी वो अन्जाने शहर में अपना घर बनाती है, भले ही ये घर उनके लिए थोड़े समय का ही होता है। लेकिन इस दौरान गुजारी सभी बातें और यादों को वो पूरी लाईफ नहीं भूल पाती है।
शशीकला सिंह