Thursday, February 24, 2011

मेरे दुख...


दुख तो मेरा बढ़ता जा रहा है
सवालों और जवाबों को साथ लिए
कहीं दुआऐं के पुल है तो कहीं बदुआओं का सागर
समय की गुलाम होती जा रही हूं मैं
परिस्थितियों को थाम नहीं पा रही हूं मैं
हर रात तन्हा गुजरती है
हर सुबह होती है रोनी सी
हम तन्हा दुनिया से लड़ेंगे
बच्चों सी बातें लगती है
कहीं सब सिमटता नज़र आता है
खुशियां फैलती है तो कहीं
बिलखता चहरा.....
हर वक्त यही परेशानी है
कभी ये सोचा ना था कि
प्यार जो परम सुख देता है
कभी वो ही दुखों की दरियां बिछाता है।
हर वक्त एक अजीब सा दर्द है
इस तन्हा दिल में जो शायद किसी के लिए भी
नहीं है,
बस मेरी तन्हाईं के लिए
इस समाज में मैं शायद सबसे
ज्यादा अपनी तन्हाईं को खोता
मेहसूस कर रही हूं....

शशीकला सिंह।

12 comments:

  1. कविता तो दुखों पर जरूर लिख दी है, लेकिन कभी उसमें बहना मत...

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  2. हर रात के बाद सुबह होती है
    हर अंधेरा का खात्मा उजाला करता है
    वो शायद कोई और होंगे जो परेशानियों से हार जाते हों
    और परिस्थितियों के गुलाम बन जाते हैं
    तुम वो हो नहीं और ना हो सकती हो
    उठ खड़ी हो एक बार फिर
    तुम काली हो तुम दुर्गा हो...
    उठ कर फिर हुंकार भरो
    कि दुनिया तुम्हें बुलाती है...
    इस जीवन को सार्थक करो
    कि जनता तुम्हें बुलाती है...

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  3. bahut achchha. man pranaun ko chhune wali rachna hai. badhai.

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  4. आदरणीय महोदया , सादर प्रणाम

    आज आपके ब्लॉग पर आकर हमें अच्छा लगा.

    आपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है......http://www.upkhabar.in/2011/03/vandana-devi-nutan-shikha-mamta-preeti.html

    इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.

    और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.

    धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........

    मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. आपसे अनुरोध है कि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.


    आपकी प्रतीक्षा में...........

    हरीश सिंह


    संस्थापक/संयोजक -- "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/

    ...

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  5. कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
    कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
    और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
    फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
    आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
    आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-



    बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  6. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

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  7. दुनिया में काफी गम है
    मेरा गम सबसे कम है

    उमेश कुमार

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  8. i read your poem in the newspaper.it forced me to visit your blog at least at once.your poem touched my heart.

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  9. दिल को छुए वही कविता होती है,
    और कविता राह दिखाए तो प्रेरणा बनती है,
    उम्मीद है आपकी ये कविता आपके लिए प्रेरणा का ही काम करेगी|

    आपने बहुत सुन्दर ढंग से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है|

    आप से अनुरोध है, आप हमारे ब्लॉग पे आकर हमारा उत्साहवर्धन करें|
    sunnychaudhary.blogspot.com

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